Featuredकवितादेश-विदेश

बेंठ बिना,टंगीया के–

बेंठ बिना,टंगीया के–


बिहनिया बेरा देखेंव त,
रुख ह बने अड़े रिहिस|
संझा के होवत ले कटाके,
भुइंया म वो पडे़ रिहिस||
तोर हाल कइसे होगे जी,
मेंहा पूछ परेंव रुख ल|
बम फाड़के रोवत वोहा,
बताइस अपन दुख ल||
वो बैरी लोहा के टंगीया ह,
मोला धड़ा-धड़ काट दिस|
फेर मोरे लकड़ी बेंठ बनके,
देख आज मोला बाट दिस||
इहि ढंग के घटना ह जी,
आज देश,समाज म घटत हे|
अरे दूसर ल कोन कहे,
अपनेच सेती,अपने कटत हे||
सोचव न बेंठ बिना टंगीया के,
कतेक के,का औकात हे|
समझइया बर इशारा काफी,
ये लाख टका के बात हे||

रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद

Khabar Ganga

प्रधान संपादक अजय कुमार देवांगन / पता - 123 देवांगन पारा, पितईबंद राजिम जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़ ) फ़ोन नंबर- 8085276993, 7898727307 (समाचार चयन के लिए पी आर बी एक्ट तहत जिम्मेदार), समस्त विवादों का निपटारा न्यायलीन क्षेत्र गरियाबंद होगा।

Related Articles

Close