विषय-सास से ही बहू का वजूद हैं।

विषय-सास से ही बहू का वजूद हैं। ——————————- सास से हीं हर बहू का हैं वजूद सौंप दिया जिसने अपना सपूत देना नहीं उसे ग़म की कोई घूंट सुख- समृद्धि मिलेगी तुम्हें खूब। शिकवे- शिकायत को जाना भूल चरणों की उनकी लगा लेना धूल अपनी मां की तरह मान लेना तुम रहना नहीं ख़ुद में…

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हर श्वांस में भगवान।

  ———///——-///—–///— नादान है वे लोग,जो कहते हैं, मंदिर में भगवान नहीं होता| सच तो यही है गर भगवान न होता, तो दुनियाँ में इंसान ही नहीं होता|| माना कि पेड़ लगाकर तुम, अपने आप हवा पैदा कर लोगे, पर जीवन को जीवन्त करने वाली, वह प्राण कहाँ से लाओगे।। माना कि अपने बगीचे में,…

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विषय-रघुकुल सी नहीं यहां रीति-रिवाज।

कविता ———————————————- नारी के वजूद पर उठता हैं कई सवाल अंनत वेदनाओ की नहीं रखते खयाल होता आया है हर युग में ही अत्याचार सहनशीलता संयम उनकी बेमिसाल। साधु वेश में घूमते कई रावण यहां हर दिन होता हरण बेगुनाह सीता का पूर्ण सुरक्षा का बना नहीं अब तक ढाल हर पुरुष को कहां हैं…

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विषय- शक्ती काली दुर्गा मै कहलाती हूं

कविता —————– विषय- शक्ती काली दुर्गा मै कहलाती हूं ———————————————- शिव के अर्धअंग में समाहित हूँ शक्ति काली दुर्गा मैं कहलाती हूँ हर सवाल का खुद मैं जवाब हूँ मैं सृजन और प्रलय की हुंकार हूँ। सृष्टि के कण-कण में ही बसी हूँ त्रिनेत्रधारी की मैं ही परछाई हूँ अर्धनारेश्वर की बनती तपस्या हूँ हिमालय…

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स्त्री मन को समझना नहीं आसान विचारों में गहराई की नहीं कोई थाह।

विषय-लगती माँ दुर्गा सी “””””””””””””””””””””””””””””” स्त्री मन को समझना नहीं आसान विचारों में गहराई की नहीं कोई थाह। समाहित हैं जिसमें ब्रहांड का रहस्य शक्ति शौर्य अदम्य जिसमें हैं साहस। शांत रूप में लगती हैं शीतला मैया हर दर्द को समेटती अपने अंतस क्रोध में आँखों में भर लेती अंगार काली रूप धर मिटा देती…

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हमन लइका रेहेन त हमर गाँव नगरगांव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा म गरमी के दिन म झिरिया कोड़ऩ अउ वोमा कूद-कूद के नहावन।

संसो// झिरिया ले पानी- हमन लइका रेहेन त हमर गाँव नगरगांव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा म गरमी के दिन म झिरिया कोड़ऩ अउ वोमा कूद-कूद के नहावन। वो लइका पन के उमंग रिहिस हे। फेर आज इही झिरिया ह गरमी के दिन म लोगन के जीए के सहारा बनत हे। छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्र…

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बेटे की चाह में भ्रूण की करवाते हो जांच बेटी पल रही जानकर होते क्यूँ निराश।

कविता “”””””””””””””””” विषय-भ्रूण हत्या पाप —————————————— बेटे की चाह में भ्रूण की करवाते हो जांच बेटी पल रही जानकर होते क्यूँ निराश गर्भपात करवाकर करते हो तुम पाप नवरात्र में देवी के रूप में करते पूजा पाठ। माँ की कोख से जन्मे तुम भूलते ये बात बेटियां होती हैं माता पिता का अभिमान मातृ-शक्तियों से…

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मत चूको योगी…!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा हमें तो फिक्र हो रही है। अपने योगी जी के ग्रह बहुत ठीक नहीं चल रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि अपने बाबा बुलडोजर पर सवार होकर, इसको-उसको मिट्टी में मिलाते ही रह जाएं और उधर गुजरात वाले भूपेंद्र भाई पटेल दिल्ली का हनुमान बनने की दौड़ में बाजी मार…

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पता नहीं लोग क्यूँ अब भी, गिरगिट को बदनाम करते हैं।

पता नहीं क्यूँ—- —-///—///– पता नहीं लोग क्यूँ अब भी, गिरगिट को बदनाम करते हैं, जबकि उससे ज्यादा यहाँ तो| आज इंसान रंग बदलता है||– सर्प को जहरीला कहना अब बन्द कर दो साहब, क्योंकि उससे भी जहरीला, आज इंसान हो गया है– अब तो किसी को भगवान , कहने से डर लगता है साहब|…

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बुरा न मानो डैमोक्रेसी है।

(व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा) विपक्ष वालों की यही प्राब्लम है। खेलने चले आते हैं, पर जरा सी खेल भावना नहीं है। बताइए, त्रिपुरा में पहले तो भगवा पार्टी को जीतने ही नहीं दे रहे थे। जैसे-तैसे कर के बेचारों को जीत मिली है, तो इन्हें उनके जीत का जश्न मनाने में प्राब्लम है। जश्न मनाने…

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