विषय-सास से ही बहू का वजूद हैं।

विषय-सास से ही बहू का वजूद हैं।
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सास से हीं हर बहू का हैं वजूद
सौंप दिया जिसने अपना सपूत
देना नहीं उसे ग़म की कोई घूंट
सुख- समृद्धि मिलेगी तुम्हें खूब।

शिकवे- शिकायत को जाना भूल
चरणों की उनकी लगा लेना धूल
अपनी मां की तरह मान लेना तुम
रहना नहीं ख़ुद में ही तुम मशगूल।

करना नहीं बहस उनसे फिजूल
दर्द की भट्टी में तप बनी वो कुंदन
बंटवारे के किस्से का देना न आसूं
ऋण चुका न पाएगा उनका पूत।

पिलाया हैं जिसने उसे प्यार से दूध
जीवन का मतलब छांव और धूप
वक्त के साथ मिट जाता हर गुरूर
अनुभव से देती दवा वो अचूक।

सेवा सदा करना कहीं जाएं न रूठ
उनके आशीर्वाद से हीं मिलता सुख
अतीत की यादों में जाती हैं वो डूब
वर्तमान की हालात से होती नाखुश।

उम्र के ये मोड़ होते उनके नाजुक
तानों और कटु बातो से देना न चोट
बुढ़ापा तो हैं बचपन का एक रूप
रखना परिवार को सदा एकजुट।

कभी कहना नहीं मेरी सास हैं भूत
भविष्य में उसकी जगह लोगी तुम
रीति-रिवाज से सीखा देती सबकुछ
देना जीते जी सम्मान उसे भरपूर।
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प्रेषक,
कवयित्री
सुश्री सरोज कंसारी
नवापारा राजिम
जिला-रायपुर (छ. ग)