स्त्री मन को समझना नहीं आसान विचारों में गहराई की नहीं कोई थाह।

विषय-लगती माँ दुर्गा सी
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स्त्री मन को समझना नहीं आसान
विचारों में गहराई की नहीं कोई थाह।
समाहित हैं जिसमें ब्रहांड का रहस्य
शक्ति शौर्य अदम्य जिसमें हैं साहस।

शांत रूप में लगती हैं शीतला मैया
हर दर्द को समेटती अपने अंतस
क्रोध में आँखों में भर लेती अंगार
काली रूप धर मिटा देती अत्याचार।

वीणा की झंकार,शारदा की अवतार
प्रेम से हर लेती सबके दुख- क्लेश
कभी नहीं करती जख्मों की नुमाईश
नर की अर्धांगनी जो बनती नारायणी।

सती सी समर्पण गीता की हैं ज्ञान
संघर्षो के पथ चल बाधा करती पार
आँचल में रखती असीम स्नेह धार
करुणा दया की मूरत देती दुलार।

जुड़ी तुमसे ही हृदय की एहसास
बातों में होती अपनेपन की मिठास
मनमोहक रूप हैं लगती माँ दुर्गा सी
मर्यादा का रखती सदा ही ध्यान।

राम की पावनी बन जाती सीता भी
कल्पनाओं की ओढ़े रहती चादर
हौसलों की हथियार लें आगे बढ़ती
रुकती, थकती न बिखरती हैं कभी।

झुकते चरणों में जमीं व आसमान
चाहतों को करती हरपल वो दफन
अधूरी ही रहती जिसकी हर दास्ताँ
पढ़े,लिखें व जाने देवी हैं सृजन की।।
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प्रेषक,
कवयित्री
सरोज कंसारी
नवापारा राजिम
जिला-रायपुर(छ.ग.)