नारधा में सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए आज वट सावित्री रहेगी ।
राजेंद्र साहू संवाददाता
मगरलोड :-जेठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है इसी दिन अमावस्या और शनि जयंती भी है वट सावित्री व्रत पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूजा करती है। इसलिए इस व्रत में पूजा सामग्री का विशेष महत्व है साथ ही इस पूजा में बरगद के वृक्ष का पूजा किया जाता है।सनातन धर्म में व्रतों का खास महत्व है, वट सावित्री व्रत को भी बेहद खास माना जाता है। इस बार वट सावित्री व्रत 19 मई, शुक्रवार को रखा जाएगा। उसी दिन दर्श अमावस्या भी मनाई जाएगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से छीनकर वापिस ले आई थी। इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है यानी पेड़ की जड़ ब्रह्म जी का वास है, तने में श्री विष्णु जी का वास है और शाखाओं में शिव जी का वास है।
वट सावित्री व्रत का महत्व
कहां जाता है कि वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था। किसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी इसीलिए पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन महिलाएं इसी दिन व्रत रखती है इस व्रत में महिलाएं सावित्री के समान और पति की दीर्घायु की कामना तीनों देवताओं से करती है ताकि उसके पति को अच्छा स्वस्थ और दीर्घायु प्राप्त हो सके
इस व्रत में क्यों होती है बरगद की पूजा
वट वृक्ष (बरगद) एक देव वृक्ष माना जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सावित्री भी वट वृक्ष में रहते हैं। प्रलय के अंत में श्री कृष्ण भी इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट हुए थे। तुलसीदास ने वट वृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है। ये वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है बल्कि काफी ज्यादा दीर्घायु वाला भी है। लंबी आयु, शक्ति, धार्मिक महत्व को ध्यान में रखकर इस वृक्ष की पूजा होती है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस वृक्ष को ज्यादा महत्व दिया गया है। जिसमें उपस्थित डामिन साहू, रुकमणी साहू (शिक्षिका), उषाउर्वशी साहू, चंपा, लोकेश्वरी, धनेश्वरी, बेनुमति, हर्षा ,धनेश्वरी, पूर्णिमा निषाद, एवं बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित रहे