बचाओ, बचाओ वह मुझे मार डालेगी।
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बचाओ, बचाओ वह मुझे मार डालेगी। वह देखो, मेरे पीछे कुल्हाड़ी लेकर दौड़ रही है। कहते हुए गंगाराम बिस्तर से उठकर खोर (गली) की ओर दौड़ पड़ा। गंगाराम की भयावह आवाजें सुनकर उनके माता-पिता और बच्चे भी भयभीत हो गए। फिर गंगाराम के हाथ पकड़ कर उसे बाहर से घर ले आए और उससे पूछा, “बेटा, यहां तो कोई नहीं है फिर कौन तुझे मारने आएगा? जो इस तरह से बड़बड़ाते हो।”
गंगाराम ने उंगली दिखाते हुए पुनः कहा, ” वह देखो, मेरे ही सामने खड़ी है। मैं जहां जाता हूं वही मेरे पीछे पड़ जाती है। निश्चित ही वह मुझे मार डालेगी।” रात्रि के करीबन दो बजे थे। जेठ की भीषण गर्मी में भी गंगाराम भय से कांप रहा था। एक -दो घंटे बाद किसी तरह उसका भय शांत हुआ।
सुबह गंगाराम की मां बोली, “बेटा, रात में तुम्हें क्या हो गया था , कहीं तुझे भूत- प्रेत तो नहीं पकड़ लिये थे? जोर -जोर से चिल्ला रहे थे। तुम्हारी स्थिति देखकर हम सब डर गए थे, क्या तुम्हें किसी अच्छे ओझा (बैगा) को दिखाना पड़ेगा।”
गंगाराम ने कहा, “मुझे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था मां ! मैं तो रात में सपना देखते- देखते कौवा (परेशान) रहा था।” मां बोली, “पर तुम तो कहते थे बचाओ, बचाओ। कोई कुल्हाड़ी लेकर मुझे मारने आ रहा है, परंतु वहां पर कोई नहीं था। गंगाराम ने अंतर्मन की बातें अपनी मां को रोते हुए बताया, “मांजी !आपसे आज तक मैं यह राज छुपा कर रखा था, आज मैं आपके सामने खुलकर बताता हूं। मैंने जानबूझकर थाने में गोदावरी के गुम होने की रिपोर्ट लिखवाया था जबकि तुम्हारी बहू कहीं घूम नहीं हुई थी। मैंने ही उसे पर पुरुष के संग होने की आशंका से मार डाला। रात्रि के करीब दो बजे का समय रहा होगा। वह खाट पर सोई हुई थी। मैंने उसे कुल्हाड़ी से गोंदा- गोंदा (टुकड़ा- टुकड़ा) काट डाला और बोरा में भरकर नदी में फेंक दिया। घनघोर अंधियारी की वजह से कोई जान नहीं पाया। इस घटना को बीते करीब दस वर्ष हो गए। बाहर के लोग तो आज तक जान ही नहीं पाए, परन्तु मेरी अंतरात्मा तो जानती है कि मैंने अपनी पत्नी गोदावरी का एक बार में ही काम तमाम कर दिया परन्तु गोदावरी तो मुझे हर क्षण मार रही है। जब उसकी याद आती है तब मानो मुझे कुल्हाड़ी लेकर दौड़ती हुई नजर आती है यह मेरे पाप कर्मों का फल ही है , जो मेरे मन में बार-बार चलचित्र की तरह दिखाई देते हैं ।आज रात्रि में मेरे अंतर्मन की आवाजें जुबान से निकल आई।” कहते हुए गंगाराम एक बार फिर फूट-फूटकर रो पड़ा।
लेखक
दिनेंद्र दास
कबीर आश्रम करहीभदर
अध्यक्ष, मधुर साहित्य परिषद् तहसील इकाई बालोद, जिला- बालोद (छत्तीसगढ़)
पिन कोड 419227
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