पता नहीं लोग क्यूँ अब भी, गिरगिट को बदनाम करते हैं।
पता नहीं क्यूँ—-
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पता नहीं लोग क्यूँ अब भी,
गिरगिट को बदनाम करते हैं,
जबकि उससे ज्यादा यहाँ तो|
आज इंसान रंग बदलता है||–
सर्प को जहरीला कहना
अब बन्द कर दो साहब,
क्योंकि उससे भी जहरीला,
आज इंसान हो गया है–
अब तो किसी को भगवान ,
कहने से डर लगता है साहब|
क्योंकि जिस पर भरोसा करो,
आज वही लाश बेच देता है–
समझ नहीं आता किस,
चेहरे को,मैं मासूम कहूँ|
जिसने सुबह मुर्गी पाली थी,
शाम को बोटी-2काट देता है–
अब तो गले मिलने से भी,
यहाँ डर लगता है”प्रखर”,
पता नहीं कौन शख़्स,
पीठ पीछे छुरा घोंप दे–
रचनाकार:– श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद (छ.ग.)