सतीश उपाध्याय
26 दिसंबर वह काला दिन है, जब गुरु गोविंद सिंह जी के दो पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी (आठ वर्ष) और बाबा फतेह सिंह जी ( पाँच वर्ष) की शहादत हुई थी। इन दोनों नन्हें वीर बालकों ने अपनी जान देना मंजूर किया, मगर अपना धर्म बदलना स्वीकार नहीं किया। पंजाब के सरहिंद के नवाब नीच वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को फतेहगढ़ साहिब की बेहद ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया था और बाद में दोनों बच्चों से कहा कि “तुम इस्लाम धर्म कबूल कर लो!” तो बच्चों ने इंकार कर दिया।उनके द्वारा दृढ़तापूर्वक मना कर दिया, बस यही दुहराते रहे, “जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल!” वजीर खान ने बच्चों को खूब धमकाया, डराया पर वीर बालक नहीं डरे तो दोनों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया। वे 26 दिसंबर 1705 को आत्म सम्मान के लिए बलिदान हो गए थे । उनके सर्वोच्च और अप्रतिम बलिदान के लिए सम्मान स्वरूप 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया । कृतज्ञ राष्ट्र ने श्रद्धांजलि के रूप में 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ घोषित किया । गुरु गोविंद सिंह जी जब चमकौर के किले में थे, तब पीछे पीछे मुगल सैनिक आ गए। तो युद्ध करना ही था। पहले उनके बड़े साहबजादे अजीत सिंह युद्ध के लिए गए। वे बहादुरी के साथ लड़ते हुए शहीद हुए तो छोटे साहेबजादे तैयार हो गए। हालांकि गुरुजी और सैनिकों ने उन्हें समझाया लेकिन साहबजादे नहीं माने। अजीत सिंह तो युद्ध कौशल में फिर भी बहुत पारंगत थे, पर जुझार सिंह उतने निपुण नहीं थे, फिर भी वे जब नही माने तो गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें खुद तैयार करके भेजा। हालांकि जुझार सिंह भी अंततः शहीद हो गए। मुगल सैनिकों की नीचता देखें कि घायल जुझार सिंह को हाथियों से कुचलवा दिया। एक तरफ चमकौर के युद्ध में दो साहेबजादे शहीद हुए तो दूसरी तरफ दो साहेबजादे सरहिंद में शहीद हुए। इसीलिए चारों साहबजादों की स्मृति में वीर बाल दिवस मनाने की शुरुआत हो गई है।
प्रहलाद, ध्रुव, नचिकेता से चली आ रही बालकों की वीरता, ज्ञान, तप और धैर्य की परंपरा रही है। और यही आने वाली पीढियों के लिए आदर्श भी हैं ।”वीर बाल दिवस” देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा के बलिदान और दसवें गुरुओं के चारों साहबजादों के महान बलिदान की याद दिलाने के साथ ही भारत के अतीत पहचानने और आने वाले भविष्य के निर्माण की भी प्रेरणा देता रहेगा। यह ‘एक भारत- श्रेष्ठ भारत ‘के विचार के लिए प्रेरणापुंज भी है । निसंदेह ऐसी शौर्य गाथाओं का बारम्बार स्मरण किया जाना चाहिए। दुनिया में जब कभी, वीर एवं शौर्य दिखाने वाले बालकों की चर्चा होगी तो उसमें वीर बालक जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी का नाम सम्मान के साथ लिया जाएगा।
गुरु गोविंद सिंघ जी के साहबजादों ने सिर्फ 7 और 9 साल की आयु में धर्म को सर्वोपरि मानते हुए उसकी रक्षा की ,और अपनी शहादत दे दी, जिनके सम्मान में देश ने प्रथम बार 26 दिसंबर गत वर्ष 2022 को पहला ‘वीर बाल दिवस’ मनाया था।
देश के बच्चों में देश प्रेम के संस्कार विकसित करने वीरता एवं,देश प्रेम का जज्बा पैदा करने के लिए वीरता और बलिदान की सच्ची कहानी से परिचित कराने वाले -“वीर बाल दिवस “कार्यक्रम तब 26 दिसंबर को दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष आतिथ्य में मनाया गया था। देश के इन नौनिहालों के बलिदान की स्मृति में अब प्रतिवर्ष 26 दिसंबर को यह आयोजित किया जाता है ।इस दिन एकजुट होकर राष्ट्र को नमन करने के लिए 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में एक नई शुरुआत की गई है। यह वीर बाल दिवस हमें यह स्मरण दिलाता है कि शौर्य की पराकाष्ठा के समय अबोध आयु मायने नहीं रखती। साथ ही हमें यह भी इस बात का भी कर्तव्य बोध कराता है कि दसवें गुरुओं का देश के लिए क्या योगदान रहा। देश के स्वाभिमान के लिए सिख परंपरा का बलिदान अद्भुत रहा है।’वीर बाल दिवस ‘हमें भारत की गौरवशाली अतीत एवं भारत की पहचान भी बताता है ।
विगत वर्ष के 26 दिसंबर को आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने ‘वीर बाल दिवस ‘कार्यक्रम में कहा था कि – “मैं वीर साहबजादों के चरणों में नमन करते हुए उन्हें कृतज्ञ श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं इसे मैं अपनी सरकार का सौभाग्य मानता हूं कि 26 दिसंबर का दिन ‘वीर बाल दिवस ‘के तौर पर घोषित करने का अवसर मिला है।” यदि हम इस शौर्य गाथा का स्मरण करें तो हमें याद आता है एक और लाखों की फौज और दूसरी ओर अकेले होकर भी निडर खड़े गुरु के वीर साहबजादे ।जो डरे नहीं ,किसी के सामने झुके नहीं, बल्कि चट्टान की तरह अडिग रहे । अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी ने अपना जीवन कुर्बान कर दिया। अब हमारा यह दायित्व है कि हम -“वीर बाल दिवस” के माध्यम से इनके संदेश को देश के कोने-कोने तक ले जाएं । हमारे साहबजादों का जीवन संदेश देश के हर बच्चों तक पहुंचे, वह इनसे प्रेरणा लेकर देश के लिए एक समर्पित एवं जिम्मेदार नागरिक बने । उनमें देश प्रेम का जज्बा पैदा हो।
निसंदेह यदि हमें भारत के भविष्य को उच्च शिखर तक ले जाना है तो हमें अतीत के इन स्वर्णिम शहादत के पन्नों को पलटना होगा। आजादी के अमृत काल में देश ने गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का प्राण भी फूंका है । नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी 2022 को गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर साहबजादों जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी की शहादत की याद में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की क्योंकि इसी दिन जोरावर सिंह और फतेह सिंह जी को एक दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था । इन दोनों महान बालकों ने धर्म के सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय अपनी मृत्यु का सहज वरण किया था । माता गुजरी , गुरु गोविंद सिंह जी और चार साहिबजादों की वीरता और आदर्श लाखों लोगों को शक्ति प्रदान करने में सक्षम हैं। वे अन्याय के आगे कभी नहीं झुके। उन्होंने एक ऐसे विश्व की कल्पना की थी जो समावेशी और सामंजस्य संपूर्ण हो ।
गुरु गोविंद सिंह जी का अटल संकल्प था-” राष्ट्र प्रथम”। व्यक्ति से बड़ा विचार राष्ट्र का होता है । जब वह बालक थे तो गुरु तेग बहादुर जी के सामने यह प्रश्न आया कि राष्ट्र धर्म की रक्षा के लिए बड़े बलिदान की जरूरत है । तब बालक गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पिता से कहा था कि आप से महान आज कौन है। यह बलिदान आप दीजिए और उनके पिता ने अपने धर्म की रक्षा हेतु बलिदान दिया। उन्होंने अपना शीश काटना मंजूर किया लेकिन औरंगज़ेब के सामने झुकना मंजूर नहीं किया। जब गुरु गोविंद सिंह जी पिता बने तो वही संस्कार उनके चारों साहबजादों में आए। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने बेटों को भी राष्ट्र धर्म के लिए बलिदान करने में कोई संकोच नहीं किया । और बेटों ने भी हँसते-हँसते बलिदान कर दिया। जब उनके बेटों का बलिदान हुआ तो उन्होंने अपनी संगत को देखकर कहा था-” चार मुये तो क्या हुआ जीवित कई हजार” अर्थात मेरे चार बेटे देश के लिए शहीद हो गए तो क्या हुआ, संगत के कई हजार साथी हजारों देशवासी मेरे बेटे ही हैं।