ताज्जुब है यार—-

ताज्जुब है यार—-
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सरकारी कंस्ट्रकशन में,कोई भ्रष्ट्राचार नहीं|
और दोस्तों के बीच,आज कोई गद्दार नहीं||
ताज्जुब है यार—
आज रसोई के दाल में,जरा सा काला नहीं|
बड़े अधिकारी,किसी मंत्री का साला नहीं||
ताज्जुब है यार—
बहुमंजिला इमारत में,कहीं भी कोई ताला नहीं|
करोड़ों का बजट है,लेकिन कोई घोटाला नहीं||
ताज्जुब है यार—
डॉक्टर बिना फीस के,आज इलाज कर देता है|
दफ्तर का बाबू,बिना घूस के काम कर देता है||
ताज्जुब है यार—
नेता जनता को छलने वाला,भाषण नहीं देता है|
अमीर लोग गरीबी रेखा का,राशन नहीं लेता है||
ताज्जुब है यार—
आज भी कुछ शिक्षक,ईमानदारी से पढ़ाता है|
मजदूर एक घंटे में,मनरेगा काम कर जाता है||
ताज्जुब है यार—
नींद खुली तो पता चला,यह तो सिर्फ सपना है|
इस मतलब की दुनिया में,किसे कहूँ अपना है||

काश यह सपना,हकीकत में ही पूरी हो जाए|
उसी वक्त भारत में, राम राज्य फिर आ जाए||
रचनाकार:-श्रवण कुमार साहू, “प्रखर”
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद