कविता
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विषय- शक्ती काली दुर्गा मै कहलाती हूं
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शिव के अर्धअंग में समाहित हूँ
शक्ति काली दुर्गा मैं कहलाती हूँ
हर सवाल का खुद मैं जवाब हूँ
मैं सृजन और प्रलय की हुंकार हूँ।
सृष्टि के कण-कण में ही बसी हूँ
त्रिनेत्रधारी की मैं ही परछाई हूँ
अर्धनारेश्वर की बनती तपस्या हूँ
हिमालय में भी मैं विस्तारित हूँ।
प्रेम की धारा बन जग में रहती हूँ
असुरों का संहार भी तो करती हूँ
दया करुणा व स्नेह की प्यासी हूँ
धरती पर हर घर में विराजित हूँ।
सम्मान हो जहाँ वही मैं ठहरती हूँ
तीनों लोक में भी मैं पूज्यनीय हूँ
तीर्थधाम मैं ही फिर कहलाती हूँ
यूँ तो मैं शीतल जल की धारा हूँ।
दुष्टों के लिए बन जाती अंगारा हूँ
हर दिल में ममता बन धड़कती हूँ
बच्चों के खुशियों की फौव्वारा हूँ
बनती सबके लिए मैं ही सहारा हूँ।
उम्मीदों के साये में ही मैं जीती हूँ
संघर्षो की अजब ही मैं गाथा हूं
धरा पर धीर की मैं ही परिभाषा हूँ
शिवशक्ति की प्रतीक मैं ही नारी हूँ।।
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प्रेषक,
कवयित्री
सरोज कंसारी
नवापारा राजिम
जिला-रायपुर(छ. ग.)